1,076 bytes added,
13:12, 23 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इक नशा सा ज़हन पर छाने लगा
आपका चेहरा मुझे भाने लगा
चांदनी बिस्तर पे इतराने लगी
चांद बांहों में नज़र आने लगा
रूह पर मदहोशियां छाने लगीं
जिस्म ग़ज़लें वस्ल की गाने लगा
तुम करम फ़रमा हुये सदशु क्रिया
ख़्वाब मेरा मुझ को याद आने लगा
रफ़्तारफ़्तायासमीं खिलने लगी
मौसमे- गुल र्इश्क़ फ़रमाने लगा
जुल़्फ की खुशबू, शगुफ़्तालब 'कंवल'
मंज़रे-पुर कैफ़ दिखलाने लगा
</poem>