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मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत।
चिा-बिा हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग ड्डेरत॥
मुरली, क्रीेड़ाक्रीड़ा-कमल प्रड्डुल्लित प्रफ्फुल्लित लिये एक कर, दूजे दरपन।
देखि राधिका, करन लगी निज पुनः-पुनः अर्पित कौं अरपन॥
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