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किसान / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
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09:45, 12 जनवरी 2014
चुप रहते, सहते हैं किसान ।।
नजराने देते पेट काट, कारिन्दे लेते लहू चाट,
दरबार
बीऊच
बीच
कह चुके लाट, पर ठोंक-ठोंक अपना लिलाट,
रोते दुखड़ा अब भी किसान ।।
कितने ही बेढब सूदखोर, लेते हैं हड्डी तक चिंचोर,
अनिल जनविजय
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