गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
भक्त की अभिलाषा / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
No change in size
,
10:29, 12 जनवरी 2014
तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ,
तू है महासागर अगम मैं एक धारा क्षुद्र हूँ ।
तू है महानद तुल्य तो मैं एक
बूँड
बूँद
समान हूँ,
तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ ।।
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits