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वर्षा की रात / जीवनानंद दास
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14:52, 12 जनवरी 2014
भीतर चला जाता हूँ — उस खुले मुँह में ।
(
यह कविता ’महापृथिवी’ संग्रह से)
</poem>
अनिल जनविजय
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