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10:32, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
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<poem>बाद बिछुड़ने के हुआ मालूम ,
वो मेरे कितने करीब थे !
था मै नाचीज़ उनके लिए पर,
मेरे लिए वो नसीब थे !
गैरो में गिनता था खुद को ,
पाया तो वो बड़े अज़ीज़ थे !
थी जो दिले - जागीर पास मेरे ,
लूटे तो सबसे गरीब थे !
बाद बिछुड़ने के हुआ मालूम ,
वो मेरे कितने करीब थे !
</poem>