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07:07, 23 नवम्बर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=
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हम इन्तेज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक
ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए
यह इन्तेज़ार भी एक इम्तेहान होता है
इसी से इश्क का शोला जवान होता है
यह इन्तेज़ार सलामत हो और तू आए
बिछाए शौक़ के सजदे वफ़ा की राहों में
खड़े हैं दीद की हसरत लिए निगाहों में
कुबूल दिल की इबादत हो और तू आए
वो ख़ुशनसीब हो जिसको तू इन्तेख़ाब करे
ख़ुदा हमारी मौहब्बत को कामयाब करे
जवाँ सितार-ए-क़िस्मत हो और तू आए
ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए