Changes

{{KKCatGeet}}
<poem>
 मत करो प्रिय ! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
जी रहा है प्यास पी-२ कर जहान।
मत करो प्रिय ! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
अश्रु जीवन में अमृत से भी महान।
मत करो प्रिय ! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
प्राण! जीवन ्क्या क्या क्षणिक बस साँस का व्यापार
देह की दुकान जिस पर काल का अधिकार
रात को होगा सभी जब लेन-देन समाप्त
फ़ूल के शव पर खड़ा है बागबान।
मत करो प्रिय ! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
 
 
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits