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सआदत यार ख़ाँ रंगीन / परिचय

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|रचनाकार=सआदत यार ख़ाँ रंगीन
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सआदत यार खां 'रंगीन' अपने जमाने ज़माने के प्रसिद्द प्रसिद्ध कवियों में शुमार किये किए जाते है | है। उर्दू शायरी की हसीन रिवायत रवायत रही है, उर्दू शायरी का यह सफर सफ़र सदियों पुराना है| है। यह वो समय था जब मुगलिया सल्तनत का सूरज धीरे-धीरे अस्त हो रहा था, फिरंगी घोडो की ताप हर जगह सुनाई दे रही थी| थी। मुगलों की आमद ने 'रेखतीरेख़ती' जबान को खुशामदीद ख़ुशामदीद कहा था| था। उर्दू शायरी के आसमान में कैसे-कैसे शायर चमके| चमके। मज़हर जाने-जाना, कयाम चांदपुरीचाँदपुरी, वाली वली दक्कनी, सिराज औरंगाबादी, मिर्जा मिर्ज़ा रफ़ी सौदा, मीर हसन,, इंशा अल्लाह खां इंशा| इंशा। इसी फेहरिस्त में एक रोशन नाम सआदत यार खां रंगीन का भी है| है। रंगीन 1807 में पैदा हुए| हुए। उनके पिता का नाम तहमास बेग खां था| खाँ था। यह नजीर शाह की फौज के साथ तूरान से हिन्दुस्तान आये थे| आए थे। उनकी उम्र उस समय बहुत कम थी| थी। हिन्दुस्तान के विभिन्न हिस्सों से होते हुए वे दिल्ली आ गए|गए।
तहमास बेग खा खाँ बहादुर आदमी थे, इसलिए जल्द ही बादशाहों के करीब क़रीब हो गए| गए। उन्हें 'एतिकादे-जंग' का खिताब ख़िताब भी मिला| मिला। तहमास खा खाँ ने अपने बेटे सआदत यार खां खाँ को बड़े प्यार से पाला| प्रारंभिक पाला। प्रारम्भिक शिक्षा अच्छी दी गयी| फनेगई। फ़ने-सिपहगिरी की भी शिक्षा दी गयी| गई। तहमास खां खाँ का शुमार उस समय रईसों में होता था| था। सआदत यार खांने खाँ ने अपने बाप पिता के बारे में लिखा है की मेरा -- मेरे बाप नादिर शाह के लश्कर में दस साल रहा है| रहे हैं। बहादुरी के ऐसे किस्से क़िस्से उनके नाम से मशहूर है की हैं कि सुनने पर यकीन यक़ीन नहीं आता| आता। शुजाअत अर्थात वीरता की इन्ही तेज तेज़ लहरों के बीच रंगीन की परवरिश हुई| हुई। केवल 15 वर्ष की आयु से ही रंगीन ने शेर कहना शुरू कर दिया था| था। रंगीन का पहला दीवान 1203 हिजरी में मुकम्मल हो चूका था| चुका था। सआदत यार खां खाँ फौजी की हैसियत रखते थे, लेकिन उर्दू शायरी का जादू सर चढ़कर बोल रहा था| था। जंग के मैदान में होते तब भी शेरो-शायरी का जुनून छाया रहता| रहता। इस तरह रंगीन की शायरी की खुशबू ख़ुशबू दूर-दूर तक फैलती जा रही थी| थी। शायरी का जुनून ऐसा था कि मुलाजमत छोड़ दी और भरतपुर चले गए| गए। इसके बाद वह लखनऊ आ गए और शहजादा शहज़ादा सुलेमान शिकोह के दरबार से जुड गए| शहजादे गए। शहज़ादे ने उन्हें खजाने खज़ाने का मोहतमिम (सर्वेसर्वा) बना दिया| दिया। इतिहास में यह घटना भी दर्ज है कि रंगीन ने अमानत में हेराफेरी की| शहजादे हेरा-फेरी की। शहज़ादे के खजाने खज़ाने से एक बड़ी रकम रक़म हड़प ली, लेकिन शहजादे शहज़ादे ने उन्हें माफ माफ़ कर दिया| दिया। रंगीन 9 साल अक तक लखनऊ में रहे| आसिफद्दौला रहे। आसिफ़द्दौला के इंतकाल इन्तकाल के बाद वह विभिन्न क्षेत्रो में घूमते रहे| रहे। विशेष रूप से बंगाल से जुडी जुड़ी बहुत -सी कहानिया कहानियाँ मौजूद है| हैं। फिर उन्होंने बंगाल में नौकरी कर ली| ली। जीवन के विभिन्न रंगों का जादू ऐसा था की उन्हें अपने अशआर में ढालते हुए रंगीन को लुत्फ़ आता था| था। यह दौर उर्दू के बड़े शायरों का था, लेकिन रंगीन के शेरो की अपनी खुशबू थी|ख़ुशबू थी।
रंगीन का पेशा सिपहगिरी था| था। राजाओ और नवाबो के साथ उठना-बैठना था| था। अकीदे के एतबार से रंगीन हनफीहनफ़ी-सुन्नी थे इसलिए उनके कलाम क़लाम में जगह-जगह सूफियाना सूफ़ियाना रंग भी मिलता है| है। रंगीन तबियत से आशिक मिज़ाज भी थे| थे। उन्होंने अपने खत ख़त में अपनी महबूबा का जिक्र ज़िक्र किया है| है। एक खत ख़त ऐसा भी है जिसमे लखनऊ की एक फिरंगी औरत से इश्क के तजकरे में मिलते है| है। रंगीन ने फारसी और उर्दू में भी शायरी की है| मसनविया है। मसनवियाँ भी लिखी है| हैं। रंगीन की हज़ल गोई और फहश फ़हश-निगारी भी प्रसिद्द है| प्रसिद्ध है। उन्होंने तवायफोतवायफ़ों, मुगलनियो मुगलनियों पर भी अशआर कहे है| हैं। इस तरह रंगीन के कितने ही रंग है| हैं। एक तरफ तरफ़ ग़ज़लगो और शायर है हैं तो दूसरी तरफ तरफ़ मसनवी -निगार और कसीदा -निगार भी| भी। रंगीन के नाम से कितनी ही कहानिया कहानियाँ मशहूर है| हैं। वो जमान रेखती ज़माना रेख़ती का था| था। मीर-सौदा जैसे शायर इस रेखती रेख़ती पर कुर्बान थे, लेकिन रंगीन की रेखती रेख़ती तो कयामत थी| क़यामत थी। आबे-हयात में मुहम्मद हुसैन आज़ाद ने रंगीन की जिंदगी ज़िन्दगी पर बी 'नूर न कहती है...' के हवाले से बड़ी खूबसूरत ख़ूबसूरत रौशनी डाली है है। अब आप भी देखिये की देखिए कि बेचारी नूरन क्या कहती है...
'अरे अब एक मजे मज़े की बात सुनिए.. वो सआदत यार खां तो खाँ जो हमास का बेटा है न...अनवरी ..सुना है, वो भी रेखती रेख़ती में शायरी करता है| है। अपना नाम रंगीन रखा है| है। अरे... एक किस्सा क़िस्सा भी लिखा है| किस्से है। क़िस्से का नाम दिलपजीर रखा है| है। अब क्या बताऊबताऊँ... किस्से क़िस्से में क्या है| रंडियों ? रण्डियों की बोली है| है। मसनवी क्या है, जैसे सांडे साण्डे का तेल बेच रहे होहों, लेकिन वाह से जमान... दिल्ली-लखनऊ के रंडी रण्डी से मर्द तक सब उसका कलाम क़लाम गा रहे है|हैं।'
चली वां से दामन उठाती हुई
 
कड़े से कड़े को बजाती हुई
अब भला कोई रंगीन से पूछे...कि भाई तेरा बाप रसालदार, बरछी और तह चलाने वाला| वाला। तू ऐसा काबिल क़ाबिल कहाँ से हो गया कि रेखती रेख़ती में शेर कहने लगा| लगा। और शेर भी ऐसे कि बहुबहू-बेटियाँ पढ़े पढ़ें और अपना मुँह काला करे| 'ज़रा घर के रंगी के तहकीक कर लोकरें।
'ज़रा घर के रंगी के तहक़ीक कर लोयहाँ से है के पैसे डोली कहारों|कहारों।'
रंगीन का लहजा लहज़ा सबसे अलग था| था। रंगीन के लहजे लहज़े में स्त्री-स्वर था| था। और यह स्त्री-स्वर उस वक्त वक़्त लखनऊ से दिल्ली तक उनकी विशिष्ठ विशिष्ट पहचान बन गया| गया। रंगीन ने रेखती रेख़ती को काफी काफ़ी आगे बढ़ाया| बढ़ाया। जबान में नई जान डाल दी, इसलिए आज भी जब उर्दू शायरी कि की बात होती है तो रंगीन का नाम उनके विशिष्ठ लहजे विशिष्ट लहज़े के लिए अनायास ही जबान पर आ जाता है| है। रंगीन के शायरी संग्रह में लाखो अशआर है| हैं। रंगीन ने 81 साल की उम्र पाई| पाई। रंगीन फ़िक्र के लिहाज लिहाज़ से बड़े शायर न हो, लेकिन रेखती रेख़ती का पैगाम दूर-दूर तक पहुचाने पहुँचाने वालो में उनका नाम शामिल है|है।
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