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बादल / निवेदिता

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जो बरस पड़ते हैं
इस बिखरती हुई आधी रात में
खाली खुले खुली छत पर चांद चाँद की रौशनी में
बुलाते हैं रात भर
बुलाते हैं
कहते हैं तुम्हारे शहर में हम आए हैं
पीली मिट्टी के रास्तों
मोहगनी के घने पेड पेड़ से गुजरकर गुज़रकर
तुम्हारी गली में बरस रहे हैं
वे बड़े नसीब वाले हैं राहगीर
जो कायनाती क़ायनाती आसमान का दीदार करते हैं
तारों के उजास में
बादलों के सीने से लिपटे
खुली सड़कों पर भीगते रहते--भीगते जाते। जाते ।
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