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16:54, 17 मार्च 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
|अनुवादक=
|संग्रह=चुभते चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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{{KKCatKavita}}
<poem>
लुट गया कोई बला से लुट गया।
वु+छ नहीं तो गाँठ का उनकी गिरा।
है सुधारों की वहाँ पर आस क्या।
हो जहाँ पर सिरधारों का सिर फिरा।
बढ़ गये मान भूख तंग बने।
आप का रह गया न वह चेहरा।
देखिये अब उतर न जाय कहीं।
आप के सिर बँधा सुजस सेहरा।
तब भला वै+से न हम मिट जायँगे।
मनचले वै+से न तब हम को ठगें।
फिर गये सिर जब हमारे सिर धारे।
बात बे-सिर-पैर की कहने लगें।
हैं हमारे पंथ जो प्यारे बड़े।
हैं बुरे काँटे उन्हीं में वो रहे।
देख कर के सिरधारों का सिर फिरा।
हैं कलेजा थाम कर हम रो रहे।
</poem>
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