==कार्यक्षेत्र==
१९३० से १९३६ तक विभिन्न जेलों में कटे। १९३६-३७ में '''सैनिक''' और '''विशाल भारत''' नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। १९४३ से १९४६ तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएं कीं। जिसमें उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक में अध्यापन का काम किया। दिल्ली लौटे और दिनमान साप्ताहिक, नवभारत टाइम्स, अंग्रेजी पत्र '''वाक् ''' और '''एवरीमैंस''' जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। १९८० में उन्होंने '''वत्सलनिधि''' नामक एक न्यास की स्थापना की जिसका उद्देश्य साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करना था। दिल्ली में ही ४ अप्रैल १९८७ को उनकी मृत्यु हुई।
१९६४ में '''[[आँगन के पार द्वार/ अज्ञेय || आँगन के पार द्वार]]''' पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और १९७९ में '''कितनी नावों में कितनी बार''' पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
==प्रमुख कृतियां ==