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सच्चे वीर / हरिऔध

23 bytes removed, 10:44, 19 मार्च 2014
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संकटों की तब करे परवाह क्या। 
हाथ झंडा जब सुधारों का लिया।
 
तब भला वह मूसलों को क्या गिने।
 
जब किसी ने ओखली में सिर दिया।
दूसरे को उबार लेते हैं।
 
एक दो बीर ही बिपद में गिर।
 
पर बहुत लोग पाक बनते हैं।
 
ठीकरा फोड़ दूसरों के सिर।
सामने पाकर बिपद की आँधिायाँ।आँधियाँ।बीर मुखड़ा नेक वु+म्हलाता कुम्हलाता नहीं। 
देख कर आती उमड़ती दुख-घटा।
 
आँख में आँसू उमड़ आता नहीं।
सब दिनों मुँह देख जीवट का जिये।
 
लात अब कायरपने की क्यों सहें।
 
क्यों न बैरी को बिपद में डाल दें।
 
हम भला क्यों डालते आँसू रहें।
वे कभी बात में नहीं आते।
 
लग गई हैं जिन्हें कि सच्ची धुन।
 
वे भला आप सूख जाते क्या।
 
मुख न सूखा जवाब सूखा सुन।
काल की परवाह बीरों को नहीं।
 
वह रहे उन को भले ही लूटता।
 
काम छेड़ा छूटता छोड़े नहीं।
 
टूटता है दम रहे तो टूटता।
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