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|रचनाकार=मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
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<poem>


ख़ुदी अच्छी मगर उसका नतीजा
वही नेज़े पे सर उसका नतीजा

निकल आए मिरी शुहरत के शहपर
फिर आए दर-ब-दर उसका नतीजा

उसी से इश्क़ करने जा रहा हूँ
उसी से पूछकर उसका नतीजा

सड़क पर बेख़बर सोए हुए थे
फिर इक ताज़ा ख़बर उसका नतीजा

चला फिर आइने से एक पत्थर
इधर वो है उधर उसका नतीजा

किसी के वास्ते रोना बुरा है
न भूल ए चश्मे- तर उसका नतीजा

‘मुज़फ़्फ़र’ ओढ़ कर ताज़ा ज़मीनें
भुगतिए रात भर उसका नतीजा
</poem>