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न मंज़िल का, न मकसद का , न रस्ते का पता है / श्रद्धा जैन
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13:09, 30 मार्च 2014
<poem>
न मंज़िल का, न मकसद का , न रस्ते का पता है
हमेशा दिल किसी के
पीछे
पीछे ही चलता रहा है
थे बाबस्ता उसी से ख्वाब, ख्वाहिश, चैन सब कुछ
वीरेन्द्र खरे अकेला
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