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09:11, 17 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अपर्णा भटनागर
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इतना आसान नहीं प्रेम
हंसों का जोड़ा बतियाता है
और सामने लगा पेड़ रंगने लगता है पत्तों पर तस्वीर नल-दमयंती की
रेत में दुबका पीवणा डस लेता है मारू को
भंवर में झूल रहे होते हैं सोनी- महिवाल
किसी हाट में सच की बोलियों पर बिक रही होती है तारामति
हरिश्चंद्र का मौन
क्रंदन पर रख देता है उँगलियाँ
कितना पहचाना -अपना है
परस प्रेम का.
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