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छू जाए दिल को ऐसा कोई फ़न अभी कहाँ / 'अना' क़ासमी
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14:37, 26 अप्रैल 2014
तुम जैसी कोई चीज़ मगर दूसरी कहाँ
ये जो बरहना
<ref>निर्बस्त्र </ref>
संत है पहचानिए हुज़ूर
ये गुल खिला गई है तिरी दिल्लगी कहाँ
करने चले हैं आप ये अब आरती कहाँ
</poem>
{{KKMeaning}}
वीरेन्द्र खरे अकेला
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