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फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का रंग / 'अना' क़ासमी
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14:52, 26 अप्रैल 2014
ये शहर शहरे-मुहब्बत की अलामत था कभी
इसपे चढ़ने लगा किस-किस के ख़्यालात
<ref>सोच </ref>
का रंग
है कोई रंग जो हो इश्क़े-ख़ुदा से बेहतर
अपने आपे में चढ़ा लो उसी इक ज़ात का रंग
</poem>
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वीरेन्द्र खरे अकेला
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