|रचनाकार=घनानंद
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{{KKCatKavitt}}<कवित्तpoem> राति -द्यौस कटक सचे ही रहे, दहै दुख कहा कहौं गति या वियोग बजमार बजमर की .
लियो घेरि औचक अकेली कै बिचारो जीव,
कछु न बसाति यों उपाव बलहारे की .
जान प्यारे, लागौ न गुहार तौ जुहार करि,
जूझ कै निकसि टेक गहै पनधारे की .
हेत-खेत धूरि चूर चूर ह्वै मिलैगी,तब
चलैंगी कहानी ‘घनआनन्द’ तिहारे की
</poem>