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|संग्रह=अंधारपख / नंद भारद्वाज
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<Poem>सदियां सूं पीढी-दर-पीढी
माटी री कंवळी पुड़तां मांय
कळीज्योड़ा पग,
मुगती री खोज में
उळझ्योड़ा दूबळा मारग
अर डिगता पग
आपरी वाणी अर आपांण सारू
खुद सूं अबखती वांरी ऊरमा
अबै कीं थाकण लागी ही,

बगत परवांणै
बदळती रुतां रौ राज हौ
वांरी आवाज माथै
पगां में बेड़यां ही
आंधै आदरसां री,

आं अबखा हालात सूं हीचकतां
वै आय पूगा हा सदी रै इण पार ,
जिकां हालात रै सांम्ही
काठी राखी कूंत -
अबोला ऊभा रह्या मींट में बांध्यां मींट
वां कोनी मांनी उण राजीनांवै री
आतमघाती सरतां -
खुद रै सरबनास री,

बरसां
वांरी औलादां माथै
चढतौ रह्यौ करजौ
पीढी-दर-पीढी
जिणरौ आमनौ अर निवेड़
वांरी खिमता सूं बारै हौ,

आ अंतहीण देणायत
किण गत पूरी व्है ?
कुण पड़ताल करै
वां कपटी करारनामा री
जिकां माथै आयै बरस
अबोला अंगूठा चेपता रह्या
कीं सांसां उधारी लेवण खातर
बिनां की उजर उठायां -

म्हैं वांई गिरवी सांसां री संतान हूं
- पण गूंगौ अर निरभाग कोनीं,
म्हैंे कोनी मानूं वां करारनामां री
अणूंती अर अमानवी सरतां
जिकी फगत वांरा ई हित-स्वारथ साधती
अेक आजाद मुलक रौ वासिन्दौ हूं म्हैं
म्हारौ जलम
सूरज री पौरैदारी में व्हियौ -

जूंनी पड़गी वै विगतां
जिकी थांरै अर म्हांरै बिच्चैै
भेद किया करती -
जद हवा में जम्योड़ौ रैवतौ
अणथाग अमूंजौ
बत्तूळा देवता चक्कारा सूनै उजाड़ में
आंधी में आंख्यां सोधती रैवती गम्योड़ा मारग
अलेखूं सूदखोर घूमता रैवता
गांव री गळियां म डकरावता,

म्हैं गांव अर स्कूल बिच्चै
सोधतौ रह्यौ बापू रै चैरै माथै चिलकौ
आथमतै सूरज में कोई बदळाव रा अैनांण
धोरै री पाळ माथै बैठ
अणमिख देखतौ रह्यौ
गांव रै हीयै सूं उठतौ धूंवौ
पल-पल सांगळतौ सरणाटौ च्यारूंमेर !

लोकराज रा आं बरसां में
म्हनै देख नै अचूंभौ व्है -
आखी रिंधरोही में बिरछां री डाळ्यां माथै
कित्ता कमती पांगरै पांन
अंधारौ काढतौ रैवै आंगळ्यां रा कटका
अर हवा में उथळीजता रैवै पानां आपूं-आप
बदळतै बगत रै इतिहास रा।

मुगती री इण खोज में
म्हनै लागै के हाल आपांनै
केई पड़ाव औरूं पार करणा है,
कोसां लग जावणौ है
इण जंग रा जूंझारां नै
अलेखूं नवा गेला
अर बियाबानां रै उण पार पूगणौ है,

हाल वांरी खतावणियां में
अलेखूं ओळ्यां रौ लेखौ बाकी है
वांरै दावै, बकाया है हाल पीढियां रौ सूद
अडांणै पड़्या जोखम
वांरै कब्जै सूं बारै लावणा है,

औई वौ बगत है माकूल,
म्हैं वांरै साथै
खांधै-सूं-खांधौ जोड़ कीं करणी चावूं -
उघाड़णी चावूं उण अफरा-तफरी नै -
उजास में लावणी चावूं वांरै मन री पीड़,
खुल्ली हवा में लावणा चावूं
वै तमाम सूखा उणियारा
अंगेजणौ चावूं वौ दरद
जिकौ म्हारी कविता रौ काळजौ है।

मार्च, 1973
</Poem>
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