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आरती / संतोष मायामोहन

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|रचनाकार=संतोष मायामोहन
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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<poem>थांरी ओळ्यूं रै ओळै-दोळै
उचटै म्हारी नींद
पण म्हैं
बिछाऊं नीं थांरी उडीक मांय आंख्यां
राखूं खुली-
पोऊं
सुमंद रो सुमंद तारा-मंडळ
निजरां रै काचै सूत,
माळा रै उनमान।
परसूं मन री कंवळी आंगळ्यां।
अनै ऊठूं फेर
चिडिय़ा रै चैचाट-
उगेरूं
थांरै नांव री आरती।</poem>
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