Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनश्याम नाथ कच्छावा |संग्रह=मंडा...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनश्याम नाथ कच्छावा
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>जीवण
जियां-
आभै रै मांय
उडतो किनको।

पून सांतरी हुवै
डोरी
चरखी सूं जुड़्योड़ी हुवै
जद
अकासां लेवै
ऊंचला टीपा किनको
अर
चरखी मांय खूट जावै
डोरी
जद खावै गोचा
पछै
चरखी रो सागो
छूट जावै
ऊंचै अकासां
चढ्योड़ै किनका नैं
धरत्यां आयां सरै।

जीवण एक किनको,
पुण्याई री पून सूं
लेवै अकासां
ऊंचला टीपा,
अर
अड़-भिड़’र
लेवता पेचा
इतरा’र उडतै
जीवण रै किनका री
सांस डोर
तूट जावै,
खूट ज्यावै
ऊमर री चरखी
जद जीवण रै किनका नैं
इण धरती माथै
आवणो पड़ै।</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,484
edits