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01:41, 14 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=संजय आचार्य वरुण
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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<Poem>अचकची खाय
तोड़ काढ्यो
जद तूं
थारै अर म्हारै बिचाळै रो
हरेक रिस्तो
पण
रिस्तो फेर भी हो
आपां रै बिच्चै....
कोई रिस्तो नीं होवण रो रिस्तो।</poem>
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