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16:32, 14 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=सब के साथ मिल जाएगा / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>मुस्कुराता कैसे हैं तेरा चेहरा
झोपड़ा उड़ गया
जल गया लहलहाता खेत
बची नहीं बाड़
उजाड़ में बदल गया
फिर भी मुस्कुराता हैं तेरा चेहरा
असली तो है ना तेरा चेहरा
मुखौटा तो नहीं हैं
मुखौटे बिकते हैं
मुस्कुराते हुए
वो ही खरीदा तो नहीं
बाजार जाता ही नहीं
उसकी चपेट भी नही
कहां से लाऊंगा मुखौटा
बचा रखा हैं
उत्साह
फिर बीजेगें खेत
</poem>
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