|रचनाकार=कृष्णदास
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[[Category:पद]]{{KKCatPad}}<poeMpoem>कंचन मनि मरकत रस ओपी .ओपी।नन्द सुवन के संगम सुखकर अधिक विराजति गोपी.गोपी।।मनहुँ विधाता गिरिधर पिय हित सुरतधुजा सुख रोपी.रोपी।बदनकांति कै सुन री भामिनी! सघन चन्दश्री लोपी.लोपी।।प्राणनाथ के चित चोरन को भौंह भुजंगम कोपी.कोपी।कृष्णदास स्वामी बस कीन्हे,प्रेम पुंज को चोपी.चोपी।।<poeM/poem>