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09:55, 16 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=परमानंददास
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<poem>
यह मांगो गोपीजन वल्लभ ।
मानुस जन्म और हरि सेवा, ब्रज बसिबो दीजे मोही सुल्लभ ॥१॥
श्री वल्लभ कुल को हों चेरो,वल्लभ जन को दास कहाऊं ।
श्री जमुना जल नित प्रति न्हाऊं, मन वच कर्म कृष्ण रस गुन गाऊं ॥२॥
श्री भागवत श्रवन सुनो नित, इन तजि हित कहूं अनत ना लाऊं ।
‘परमानंद दास’ यह मांगत, नित निरखों कबहूं न अघाऊं ॥३॥
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