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13:41, 17 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हुसैनी वोहरा
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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{{KKCatKavita}}
<Poem>माटी सूं जलमै
माटी मांय रमै
माटी रो पूत
किसान तपै तावड़ै मांय
सैवै सीत
भीजै बिरखा-जळ मांय
संवारै धरती रो रूप
भरै मिनखां रो पेट
धरती रो अन्नदाता किसान
ऊजळो मन
काळो तन
सब सूं राखै हेत
साच री आन
धरती रो सपूत किसान।</poem>