त्रिलोचन शास्त्री हिंदी के अतिरिक्त अरबी और फारसी भाषाओं के निष्णात ज्ञाता माने जाते थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी वे खासे सक्रिय रहे है। उन्होंने प्रभाकर, वानर, हंस, आज, समाज जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
त्रिलोचन शास्त्री 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा वाराणसी के ज्ञानमंडल प्रकाशन संस्था में भी काम करते रहे और हिंदी व उर्दू के कई शब्दकोषों की योजना से भी जुडे़ रहे। उन्हें हिंदी सॉनेट का साधक माना जाता है। उन्होंने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की। इसके अतिरिक्त कहानी, गीत, ग़ज़ल और आलोचना से भी उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनका पहला कविता संग्रह धरती 1945 में प्रकाशित हुआ था। गुलाब और बुलबुल, उस जनपथ जनपद का कवि हूं और तपे ताप के ताये हुए दिन उनके चर्चित कविता संग्रह थे। दिगंत और धरती जैसी रचनाओं को कलमबद्ध करने वाले त्रिलोचन शास्त्री के 17 कविता संग्रह प्रकाशित हुए।
==पुरस्कार व सम्मान==
त्रिलोचन शास्त्री को 1989-90 में हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था। हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हे 'शास्त्री' और 'साहित्य रत्न' जैसे उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है। 1982 में ताप के ताए हुए दिन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था।