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माधवजू जो जन तैं बिगरै / सूरदास
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13:26, 21 मई 2014
छमि सब लोभ जु छांड़ि छवौ रस लै समीप संचरै॥
करुना करन दयाल दयानिधि निज भय दीन डर।
इहिं कलिकाल व्याल मुख ग्रासित सूर सरन
उबरे॥१२॥
उबरे॥
</poem>
Sharda suman
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