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खुला घाव / शिरीष कुमार मौर्य
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17:09, 26 मई 2014
मैं सबका आभार नहीं मान सकता
पर उसे महसूस करता हूँ
सच
कहूं
कहूँ
तो सहानुभूति पसन्द नहीं मुझे
खुले घाव जल्दी भरते हैं
अनिल जनविजय
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