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{{KKAarti|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem>हर हर हर महादेव सत्य, सनातन, सुंदर, शिव! सबके स्वामी।अविकारी, अविनाशी, अज, अंतर्यामी॥१॥ हर हर०
सत्यआदि अनंत, सनातनअनामय, सुंदरअकल, शिव ! सबके स्वामी ।कलाधारी।अविकारीअमल, अविनाशीअरूप, अजअगोचर, अंतर्यामी ॥१॥ अविचल अघहारी॥२॥ हर हर०
आदि अनंतब्रह्मा, अनामयविष्णु, अकलमहेश्वर, कलाधारी ।तुम त्रिमूर्तिधारी।अमलकर्ता, अरूपभर्ता, अगोचर, अविचल अघहारी ॥२॥ धर्ता तुम ही संहारी॥३॥ हर हर०
ब्रह्मारक्षक, विष्णुभक्षक, महेश्वरप्रेरक, तुम त्रिमूर्तिधारी ।औढरदानी।साक्षी, परम अकर्ता कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी ॥३॥ अभिमानी॥४॥ हर हर०
रक्षकमणिमय भवन निवासी, भक्षकअति भोगी, प्रेरक, तुम औढरदानी ।रागी।साक्षीसदा मसानबिहारी, परम अकर्ता कर्ता अभिमानी ॥४॥ योगी वैरागी॥५॥ हर हर०
मणिमय भवन निवासीछाल, अति भोगीकपाल, रागी ।गरल, गल, मुंडमाल व्याली।सदा मसानबिहारीचिताभस्म तन, त्रिनयन, योगी वैरागी ॥५॥ अयन महाकाली॥६॥ हर हर०
छालप्रेत-पिशाच, कपाल, गरल, गल, मुंडमाल व्याली ।सुसेवित पीत जटाधारी।चिताभस्म तनविवसन, त्रिनयनविकट रूपधर, अयन महाकाली ॥६॥ रुद्र प्रलयकारी॥७॥ हर हर०
प्रेत-पिशाचशुभ्र, सुसेवित पीत जटाधारी ।विवसनसौम्य, विकट रूपधरसुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।अतिकमनीय, रुद्र प्रलयकारी ॥७॥ शान्तिकर शिव मुनि मन हारी॥८॥ हर हर०
शुभ्रनिर्गुण, सौम्यसगुण, सुरसरिधरनिरंजन, शशिधर, सुखकारी ।जगमय नित्य प्रभो।अतिकमनीयकालरूप केवल, शान्तिकर शिव मुनि मन हारी ॥८॥ हर! कालातीत विभो॥९॥ हर हर०
निर्गुणसत-चित-आनँद, सगुणरसमय, निरंजनकरुणामय, जगमय नित्य प्रभो ।धाता।कालरूप केवलप्रेम-सुधा-निधि, हर ! कालातीत विभो ॥९॥ प्रियतम, अखिल विश्व-त्राता॥१०॥ हर हर०
सत-चित-आनँद, रसमय, करुणामय, धाता ।प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्व-त्राता ॥१०॥ हर हर० हम अति दीन, दयामय ! चरण-शरण दीजै ।दीजै।सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै ॥११॥ लीजै॥११॥ हर हर०
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