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{{KKAarti|रचनाकार=}}{{KKCatKavitaKKDharmikRachna}}{{KKAnthologyShivKKCatArti}}<poem> जय शिव ओंकारा, भज शिव ओंकारा।<BR>ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अद्र्धागी धारा॥<BR>हर हर हर महादेव॥<BR>एकानन, चतुरानन, पंचानन राजै।<BR>हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजै॥ हर हर ..<BR>.दो भुज चारु चतुर्भुज, दशभुज ते सोहे।<BR>तीनों रूप निरखता, त्रिभुवन-जन मोहे॥ हर हर ..<BR>.अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमाला धारी।<BR>त्रिपुरारी, कंसारी, करमाला धारी। हर हर ..<BR>.श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।<BR>सनकादिक, गरुड़ादिक, भूतादिक संगे॥ हर हर ..<BR>.कर मध्ये सुकमण्डलु, चक्र शूलधारी।<BR>सुखकारी, दुखहारी, जग पालनकारी॥ हर हर ..<BR>.ब्रह्माविष्णु सदाशिव जानत अविवेका।<BR>प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका। हर हर ..<BR>.त्रिगुणस्वामिकी आरती जो कोई नर गावै।<BR>कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावै॥ हर हर ..<BR>.
हर हर हर महादेव।<BR>सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी।<BR>अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी॥ हर हर .<BR>आदि, अनन्त, अनामय, अकल कलाधारी।<BR>अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥ हर हर..<BR>ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।<BR>कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी॥ हरहर ..<BR>.रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औघरदानी।<BR>साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी॥ हरहर ..<BR>.मणिमय भवन निवासी, अति भोगी, रागी।<BR>सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥ हरहर ..<BR>.छाल कपाल, गरल गल, मुण्डमाल, व्याली।<BR>चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ हरहर ..<BR>.प्रेत पिशाच सुसेवित, पीत जटाधारी।<BR>विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी॥ हरहर ..<BR>.शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।<BR>अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मनहारी॥ हरहर ..<BR>.निर्गुण, सगुण, निरजन, जगमय, नित्य प्रभो।<BR>कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ हरहर ..<BR>.सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता।<BR>प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता। हरहर ..<BR>.हम अतिदीन, दयामय! चरण शरण दीजै।<BR>सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै। हरहर ...</poem>