1,608 bytes added,
05:39, 1 जून 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर'
|अनुवादक=
|संग्रह=एक पर्दा जो उठा / सरवर आलम राज़ 'सरवर'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कोई तुम सा हो कज-अदा न कभू!
एक वादा किया वफ़ा न कभू!
ज़ख़्म-ए-दिल,ज़ख़्म-ए-जान,ज़ख़्म-ए-जिगर
लोहू ऐसा कहीं बहा न कभू!
एक दरिया-ए-दर्द-ए-बे-पायां
"इश्क़ की पाई इन्तिहा न कभू "!
कूचा कूचा गली गली देखा
आह! अपना पता मिला न कभू!
सोचता कौन इन्तिहा की जब
रास ही आई इब्तिदा न कभू?
तुझ को देखा तो यूँ हुआ महसूस
तुझ सा कोई कहीं मिला न कभू!
ऐसे खु़द आशना हुए हैं हम
याद आया हमें ख़ुदा न कभू!
हो न हो उस गली से आई है
ऐसी गुल-पाश थी सबा न कभू!
ज़िन्दगी की हज़ार राहों में
क्यों मिला कोई रास्ता न कभू?
जैसा आजिज़ है आप का "सरवर"
ऐसा कोई हो बे-नवा न कभू!
</poem>