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|रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर'
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|संग्रह=एक पर्दा जो उठा / सरवर आलम राज़ 'सरवर'
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<poem>दिल ने किसी की एक न मानी
"उफ् री मुहब्बत, हाय जवानी"

ख़ुद ही करना,ख़ुद ही भरना
इश्क़ में है कितनी आसानी!

खोल न दे सब राज़ तुम्हारे
आईने की यह हैरानी!

उनके बदले बदले तेवर
ढंग नया है, रीत पुरानी!

इश्क़ की मंज़िल?अल्लाह अल्लाह!
दरिया, दरिया,पानी, पानी!

पास-ए-वफ़ा है वरना हम भी
कहते सब से राम-कहानी

दिल के बदले दर्द लिया है
आप इसे कह लें नादानी!

जैसी करनी, वैसी भरनी
और करो "सरवर" मन-मानी!

</poem>
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