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घन कुन्तल-मेघ घिरे / राजेन्द्र गौतम
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18:09, 1 जून 2014
मन डूबे, डूब तिरे
चेतनता तन की हर
रहा अन्धकार उतर
अम्बर, भू-आँगन भर
यौवन की उठे लहर
अनिल जनविजय
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