767 bytes added,
04:44, 3 जून 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
(राग जंगला-ताल कहरवा)
नित्य नयी आसक्ति, कामना, ममता नित नव पाप।
नित्य अशान्ति, नित्य ही चिन्ता, नित्य शोक-संताप॥
बीत रहा अनर्थमय जीवन यों सारा बेकाम।
चेत करो, छोड़ो प्रमाद सब, भजो निरन्तर राम॥
</poem>