हैं उलझ गए जीने के सारे धागे
यह शहर कि जिसमें रहती है इच्छाएँ
कुत्ते भुनगे आदमी गिलहरी गाएँगायें
यह शहर कि जिसकी ज़िद है सीधी-सादी
ज्यादाज़्यादा-से-ज्यादा ज़्यादा सुख सुविधा आज़ादी
तुम कभी देखना इसे सुलगते क्षण में
यह अलग-अलग दिखता है हर दर्पण में