|रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन
}}
[[Category:गीत]]{{KKCatGeet}}<poem>दिन कितने आवारा थे<br>गली गली और <br>बस्ती बस्ती<br>अपने मन<br>इकतारा थे<br>माटी की <br>खुशबू में पलते<br>एक खुशी से <br>हर दुख छलते <br>बाड़ी, चौक, गली अमराई<br>हर पत्थर गुरुद्वारा थे<br>हम सूरज <br>भिनसारा थे<br>किसने बड़े <br>ख़्वाब देखे थे<br>किसने ताज<br>महल रेखे थे<br>माँ की गोद, पिता का साया<br>घर घाटी चौबारा थे<br>हम घर का <br>उजियारा थे<br><br/poem>