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18:09, 29 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
पीपल मेरे पूज्य पिताजी,
तुलसी मेरी माता है|
बरगद को दादा कहने से,
मन पुलकित हो जाता है|
बगिया में जो आम लगा है,
उससे पुश्तैनी नाता,
कहो बुआ खट्टी इमली को,
मजा तब बहुत आता है|
घर में लगा बबूल पुराना,
वह रिश्ते का चाचा है|
“मैं हूँ बेटे मामा तेरा,”
यह कटहल चिल्लाता है|
आंगन में अमरूद लगा है,
मंद मंद मुस्कराता है|
उसे बड़ा भाई कह दो तो,
ढेरों फल टपकाता है|
यह खजूर कितना ऊंचा है,
नहीं काम कुछ आता है|
पर उसको मौसा कह दो ,
मीठे खजूर खिलवाता है|
अब देखो यह गोल मुसंबी,
इसका पेड़ लजाता है|
पर इसका मीठा खट्टा फल,
दादी सा मुस्काता है|
जिन लोगों का पेड़ों से,
घर का रिश्ता हो जाता है|
पेड़ बचाने की मुहीम में,
वही सफलता पाता है|
</poem>