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18:13, 29 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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बालवाटिका पढ़ पढ़कर, कालू बंदर हो गये विद्वान|
इसी बात का हाथीजी ने ,शेर चचा का खींचा ध्यान|
देखो तो यह कालू बंदर, पढ़ लिखकर हो गया महान|
हम तो मात्र हिलाते रह गये ,अपने पूँछ गला और कान|
बाल वटिका बुलवाने का ,खुलकर किया गया एलान|
शाल ओढ़ाकर बंदरजी का, किया गोष्ठी में सम्मान|
पढ़ने लिखने से ही आता, है दुनियादारी का ग्यान|
खुला पुस्तकालय जंगल में, पढ़ते हैं सब चतुर सुजान|
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