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19:31, 30 जून 2014 {{KKGlobal}}
{{KKLokRachna
|भाषा=मैथिली
|रचनाकार=अज्ञात
|संग्रह= बियाह सँ द्विरागमन धरिक गीत / मैथिली लोकगीत संग्रह
}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>आगे माइ छल मनोरथ होयत प्रथम बर, पण्डित करब जमाय
आगे माइ हमर मनोरथ दैवो ने बुझलनि, जोहि लेला तपसी भिखारि
आगे माइ बेकल मनाइनि घर-घर फीरथि, आब किए करब उपाय
आगे माइ नहि ओहि बर के माय ने बाप छनि, ने छनि कुल परिवार
आगे माइ हमरो गौरी कोना सासुर बसती, के कहत निज बात
आगे माइ भनहि विद्यापति सुनू हे मनाइनि, इहो थिका त्रिभुवन नाथ
आगे माइ गौरी दाइ के यैह बर लीखल छल, लीखल मेटल नहि जाय
</poem>