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06:15, 10 जुलाई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>चरन-पादुका नेह सों पूजत नित अभिराम।
राम-प्रेम-मूरति भरत निवसत नंदीग्राम॥
मन अखंड स्मृति राम की, जीभ राम कौ नाम।
राजत कर जप-माल सुचि, तजे भोग सब काम॥
</poem>