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घनश्याम कहाँ जाकर बरसे, हर घाट गगरिया प्यासी है
मुस्लिम के होंठ कहीं प्यासे, हिंदू का कंद कंठ कहीं प्यासा
मन्दिर-मस्ज़िद-गुरूद्वारे में, बतला दो कौन नहीं प्यासा
चल रही चुराई हुई हँसी, पर सकल बजरिया प्यासी है
बोलो तो श्याम घटाओं ने, अबकी कैसा चौमास रचा
पानी कहने को थोड़ा सा, गंगा-जमुना के पास बचा
इस पर पार तरसती है गैया, उस पर पार गुजरिया प्यासी है
घनश्याम कहाँ जाकर बरसे, हर घाट गगरिया प्यासी है
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