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देखी इंसानियत
ठिठुरी हुई
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-'''डॉ0 [[सुदर्शन प्रियदर्शिनी]]'''
और इन्सानियात के इसी ख्याल को व्यक्त करती गुलजार साहब की यह त्रिवेणी-
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गोले, बारूद, आग, बम, नारे
बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है
बंध खोलो कि आज सब "बंद" है
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--'''[[गुलज़ार]]'''
--'''[[गुलज़ार]]'''
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कविताकोश में सम्मिलित कुछ रचनाकार जिन्होने हिन्दी साहित्य की त्रिवेणी विधा में रचना की है इस प्रकार हैं-
*[[गुलज़ार]]
*[[त्रिपुरारि कुमार शर्मा]]
*[[विनय प्रजापति 'नज़र']]
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