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|संग्रह=
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<poem> मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार<br>पथ ही मुड़ गया था ।<br><br>था।
गति मिली, मैं चल पड़ा,<br>पथ पर कहीं रुकना मना था<br>राह अनदेखी, अजाना देश<br>संगी अनसुना था ।<br><br>था।
चाँद सूरज की तरह चलता,<br>न जाना रात दिन है<br>किस तरह हम-तुम गए मिल,<br>आज भी कहना कठिन है ।<br><br>है।
तन न आया माँगने अभिसार<br>मन ही मन जुड़ गया था<br>मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार<br>पथ ही मुड़ गया था ।।<br><br>था।।
देख मेरे पंख चल, गतिमय<br>लता भी लहलहाई<br>पत्र आँचल में छिपाए मुख-<br>कली भी मुस्कराई ।<br><br>
एक क्षण को थम गए डैने,<br>समझ विश्राम का पल<br>पर प्रबल संघर्ष बनकर,<br>आ गई आँधी सदल-बल ।<br><br>बल।
डाल झूमी, पर न टूटी,<br>किंतु पंछी उड़ गया था<br>मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार<br>पथ ही मुड़ गया था ।।<br>था।।<br/poem>
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