Changes

{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
 
आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब
हालाँकि उस ने बारहा अपने हिलाए लब
चेहरे से जब नक़ाब हवा ने उलट दिया
देखा मुझे तो दाँतों दाँत से उसने दबाए लब तूफ़ान मेरे दिल में था उसको भी थी मेरी तलाशपूरी हुई देखकर उसेआँखों से आँखें चार हुईं मुस्कुराए लब इक दिल है एक दिल में कई रूदादे-ग़म हैं क्या कहूँ सुनाऊँ तो किसको सुनाऊँ मैं ?इज़हारे ग़म को मेरे यूँ तो बहुत तिलमिलाए लब अश्कों का एक दरिया मिला रेगजार रेगज़ार मेंगम्भीरता संजीदगी की धुन पे बहुत गुनगुनाए लब लाली लगा के होंठ पे चमकी लगाई उसने जो लाली के बाद में जबतारों भरे गगन की तरह झिलमिलाए लब जब भी दिल में 'रक़ीब' उससे मुलाक़ात हो गई खोट थी शायद इसीलिए चाहा के हाले-दिल कहूँ पर कह न पाए इज़हारे इश्क़ करते हुए थरथराए लब
</poem>
384
edits