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मैं धूप का टुकड़ा नहीं / रजत कृष्ण
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09:15, 26 अगस्त 2014
मैं तो धरती के प्राँगण में खुलकर खेलूँगा
चौकड़ी भरूँगा हिरनी
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सा वन-प्रान्तर में
नापूँगा पहाड़ों की दुर्गम चोटियाँ
अँधेरे को नाथकर चाँद से बातें करूँगा
अनिल जनविजय
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