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10:26, 2 सितम्बर 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रियदर्शन
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<poem>
इंसान ही प्रतीक्षा नहीं करते किसी भगवान की
कि वह आए और उनके दुखदर्द दूर करे
भगवान भी राह देखता रहता है किसी इंसान की
जो आए और उसकी तकलीफ भी समझे
दरअसल सिर्फ भगवान जानता है कि
वह तभी तक है जब तक इंसान तकलीफ में है।
वह भी इंसान के दुख दर्द की पैदाइश है।
जिस दिन दुख-दर्द गए, उस दिन भगवान भी गया।
शायद इसलिए भगवान दुख-दर्द बनाए रखता है
यानी यह इंसान को तकलीफ़ पहुंचाने से ज़्यादा अपने बने रहने की युक्ति है।
चाहें तो हम देख सकते हैं इस भगवान को कुछ सहानुभूति से,
आखिर हर कोई किसी तरह बचे रहने की जुगत में ही तो लगा रहता है.
फिर भगवान हमारे बहुत सारे बोझ उठाता भी है।
अपनी नाकामियों के लिए भी हम उसे ज़िम्मेदार ठहराते हैं
और
बेईमानी से अर्जित सफलताओं के लिए भी उसे प्रसाद चढ़ाते हैं
और नाकामियों और कामयाबी के बीच किए-अनकिए गुनाहों का एक पूरा सिलसिला होता है
जिसके लिए कभी हम भगवान से माफ़ी मांगते हैं और कभी आंख चुराते हैं
वह होता है इसलिए अपने को पलट कर देखने की ज़रूरत महसूस होती है
जो हैं, उससे ऊपर उठने का दबाव महसूस होता है।
</poem>