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रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 5
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03:15, 1 जनवरी 2008
भगवान सभा को छोड़ चले, करके रण गर्जन घोर चले
सामने कर्ण सकुचाया सा, आ मिला चकित भरमाया सा
हरि बड़े प्रेम से कर धर कर,
ले चढ़े उसे अपने रथ पर
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Devesh.sukhwal