गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
उषा-स्तवन-5 / मदन वात्स्यायन
18 bytes added
,
06:20, 30 सितम्बर 2014
अरे रे, किरणों की कोसी ने अपने कगारे ढहा दिए हैं,
दूर तक सर्वत्र वेग से टूटता पानी उमड़ता-घुमड़ता चारों
ओर फैल रहा है ।
अन्त तक स्थिर बलता वह एक अकेला शुक्रतारा दीप
दो अंगुल, चार अंगुल, दस अंगुल, रोशनी में धीरे-धीरे
डूब जाता है ।
</poem>
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,708
edits